मंगलम पाठ संस्कृत का subjective

  1 मंगलम पाठ

 

(1)सत्य का मुंख किस पत्र से ढका है-

सत्य का मुख हिरण्मयेन पात्र से ढका हुआ है

(2)नदिया क्या छोड़ कर समुद्र में मिल जाती है-

नदिया अपने नाम और रूप को छोड़कर समुद्र में मिल जाती है

(3)मंगलम पाठ के आधार पर सत्य की महत्ता पर प्रकाश डालें-

मंगलम पाठ में महर्षि वेदव्यास सत्य की महत्ता का वर्णन करते हुए कहते हैं कि हमेशा सत्य की जीत होती है असत्य की नहीं | सत्य से ही देवलोक का रास्ता प्रसन्न होता है ऋषिगण देवलोक को प्राप्त करने के लिए सत्य की ही मार्ग अपनाते हैं

(4)मंगलम पाठ के आधार पर आत्मा की विशेषता बताएं-

मंगलम पाठ में संकलित कठोपनिषद के मंत्र में महर्षि वेदव्यास कहते हैं कि प्राणियों के हृदय रूपी गुफा में आत्मा बंद रहती है आत्मा सूक्ष्म से सूक्ष्म और महान से महान है इस आत्मा को बस में नहीं किया जा सकता है

(5)आत्मा का स्वरूप क्या है पठित पाठ के आधार पर स्पष्ट करें-

कठोपनिषद में आत्मा के स्वरूप का बड़ा ही अच्छा वर्णन किया गया है आत्मा मनुष्य की हृदय रूपी गुफा में अवस्थित है यह अणु से भी सूक्ष्म और महान से भी महान है इसका रहस्य समझने वाला सत्य की खोज करता है

(6)महान लोक संसार रूपी सागर को कैसे पार करते हैं-

श्वेता स्वतर उपनिषद में ज्ञानी लोग और अज्ञानी लोग में अंतर स्पष्ट करते हुए महर्षि वेदव्यास कहते हैं कि ईश्वर ही प्रकाश का पुंज है उन्हीं के भव्य दर्शन से सारा संसार आलोकित होता हैं ज्ञानी लोग उस ईश्वर को जानकर संसारिक मोह माया से मुक्ति पाए हैं इसके अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है

(7)विद्वान पुरुष ब्रह्म को किस प्रकार प्राप्त करते हैं-

मुंड को उपनिषद में महर्षि वेदव्यास का कहना है कि जिस प्रकार भारतीय वे नदियां अपने नाम और रूप को छोड़कर समझ में मिल जाती है उसी प्रकार महान पुरुष अपने नाम और रूप को त्याग कर ब्राह्म में को प्राप्त कर लेते हैं

(8)उपनिषद को आध्यात्मिक ग्रंथ क्यों कहा गया है-

उपनिषद को आध्यात्मिक ग्रंथ कहा जाता है क्योंकि यह आत्मा और परमात्मा के संबंध के बारे में विस्तार पूर्वक व्याख्या करता है परमात्मा संपूर्ण संसार में शांति स्थापित करते हैं सभी तपस्वियों का परम लक्ष्य परमात्मा को प्राप्त करना ही है

(9)नदी और विद्वान में क्या समानता है-

जिस प्रकार बहती हुई नदियां अपने नाम और रूप को त्याग कर समुद्र में मिल जाती है उसी प्रकार विद्वान भी अपने नाम और रूप को प्रवाह किए बिना ईश्वर में मिल जाते हैं

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